Sunday, July 6, 2014

एक बार की बात है | की व्यक्ति के जीवित रहने की उम्मीद बिल्कुल समाप्त हो गई थी | उसने भगवान से विनती की कि यदि वह जीवित बच गया तो सो बेलो की बली भगवान को देगा | और भगवान ने उसकी विनती स्वीकार कर ली तथा वह व्यक्ति ठीक होने लगा |
परन्तु ठीक होने के बाद उस व्यक्ति में लालच आ गया और उसने बेलो की मुर्तिया बनवाई और वेदी पर रखकर उनमे आग लगा दी | तब उसने प्रार्थना की, “ओ स्वर्ग में रहने वाले भगवान, मेरी भेंट स्वीकार करो |”
भगवान यह देख क्र नराज हो गए हो उसे सबक सिखाने की लिए एक उपाय किया | उसी रात भगवान ने उस व्यक्ति को उसके सपने में दर्शन दिए और कहा – “हे मानव, समुंद्र किनारे जाओ और वहा पर तुम्हारे लिए सो मुद्रए रखी है |”
व्यक्ति को लालच आ गया और सुबह होते ही वह समुंद्र की किनारे पहुचा, परन्तु उसे वहा कुछ नहीं मिला | लालच के चक्कर में वह समुंद्र के किनारे – किनारे चलने लगा | चलते – चलते वह एकदम निर्जन व् वीरान जगह पर पहुच गया जहा चट्टानों की आड़ में समुद्री डाकू छिपे बेठे थे | समुंद्री डाकुओ ने उसे पकड़ा और बंदरगाह पर ले गए | वहा जाकर उन्होंने उसे गुलाम बनाकर बेच दिया तथा सो मुद्राए प्राप्त क्र ली |
सीख: धोखा देने वाले व्यक्ति का कभी भला नहीं होता है |

Saturday, August 31, 2013

कोई दुख न हो तो बकरी खरीद लो

उन दिनों दूध की तकलीफ थी। कई डेरी फर्मों की आजमाइश की, अहारों का इम्तहान लिया, कोई नतीजा नहीं। दो-चार दिन तो दूध अच्छा, मिलता फिर मिलावट शुरू हो जाती। कभी शिकायत होती दूध फट गया, कभी उसमें से नागवार बू आने लगी, कभी मक्खन के रेजे निकलते। आखिर एक दिन एक दोस्त से कहा-भाई, आओ साझे में एक गाय ले लें, तुम्हें भी दूध का आराम होगा, मुझे भी। लागत आधी-आधी, खर्च आधा-आधा, दूध भी आधा-आधा। दोस्त साहब राजी हो गए। मेरे घर में जगह न थी और गोबर वगैरह से मुझे नफरत है।

Thursday, August 29, 2013

कुसुम

साल भर की बात है, एक दिन शाम को हवा खाने जा रहा था कि महाशय नवीन से मुलाक़ात हो गयी। मेरे पुराने दोस्त हैं, बड़े बेतकुल्लफ़ और मनचले। आगरे में मकान है, अच्छे कवि हैं। उनके कवि-समाज में कई बार शरीक हो चुका हूँ। ऐसा कविता का उपासक मैंने नहीं देखा। पेशा तो वकालत का है; पर डूबे रहते हैं काव्य-चिंतन में, आदमी ज़हीन हैं, मुक़दमा सामने आया और उसकी तह तक पहुँच गये; इसीलिए कभी-कभी मुक़दमें मिल जाते हैं, लेकिन कचहरी के बाद अदालत या मुक़दमें की चर्चा उनके लिए निषिद्ध है। अदालत की चारदीवारी के अन्दर चार-पाँच घंटे वह वकील होते हैं। 

कुत्सा

अपने घर में आदमी बादशाह को भी गाली देता है। एक दिन मैं अपने दो-तीन मित्रों के साथ बैठा हुआ एक राष्ट्रीय संस्था के व्यक्तियों की आलोचना कर रहा था। हमारे विचार में राष्ट्रीय कार्यकर्ताओं को स्वार्थ और लोभ से ऊपर रहना चाहिए। ऊँचा और पवित्र आदर्श सामने रख कर ही राष्ट्र की सच्ची सेवा की जा सकती है। कई व्यक्तियों के आचरण ने हमें क्षुब्ध कर दिया था और हम इस समय बैठे अपने दिल का गुबार निकाल रहे थे। संभव था, उस परिस्थिति में पड़कर हम और भी गिर जाते, लेकिन उस वक्त तो हम विचारक के स्थान पर बैठे हुए थे और विचारक उदार बनने लगे, तो न्याय कौन करे? विचारक को यह भूल जाने में विलम्ब नहीं होता कि उसमें भी कमजोरियाँ हैं। उस में और अभियुक्त में केवल इतना ही अन्तर है कि यो तो विचारक महाशय उस परिस्थिति में पड़े ही नहीं, या पड़कर भी अपने चतुराई से बेदाग निकल गये। 

क़ातिल

जाड़ों की रात थी। दस बजे ही सड़कें बन्द हो गयी थीं और गालियों में सन्नाटा था। बूढ़ी बेवा मां ने अपने नौजवान बेटे धर्मवीर के सामने थाली परोसते हुए कहा-तुम इतनी रात तक कहां रहते हो बेटा? रखे-रखे खाना ठंडा हो जाता है। चारों तरफ सोता पड़ गया। आग भी तो इतनी नहीं रहती कि इतनी रात तक बैठी तापती रहूँ।
धर्मवीर हृष्ट-पुष्ट, सुन्दर नवयुवक था। थाली खींचता हुआ बोला-अभी तो दस भी नहीं बजे अम्मॉँ। यहां के मुर्दादिल आदमी सरे-शाम ही सो जाएं तो कोई क्या करे। योरोप में लोग बारह-एक बजे तक सैर-सपाटे करते रहते हैं। जिन्दगी के मज़े उठाना कोई उनसे सीख ले। एक बजे से पहले तो कोई सोता ही नहीं।
मां ने पूछा-तो आठ-दस बजे सोकर उठते भी होंगे।