शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास ने शिवाजी को बचपन से ही आध्यात्मिक शिक्षा दी थी। वह समय-समय पर अपने कुछ शिष्यों को लेकर शिवाजी का हालचाल जानने और गंभीर विषयों पर परामर्श देने के लिए उनके पास जाते थे।
एक बार वह कुछ शिष्यों को साथ लेकर शिवाजी से मिलने जा रहे थे। रास्ते में उनके शिष्यों को भूख-प्यास सताने लगी। गुरु उनसे कुछ दूर आगे-आगे चल रहे थे। बीच में उन्होंने एक गन्ने का खेत देखा। भूख और प्यास न रोक पाने के कारण वे उस खेत में घुस गए और सबने एक-एक गन्ना अपने लिए उखाड़ लिया और चूसने लगे। तभी खेत का मालिक वहां आ पहुंचा और देखते ही वह समर्थ रामदास के शिष्यों की ओर डंडा लेकर दौड़ा। वे सब अपने गुरु की शरण में भागे। तब खेत का मालिक भी उनका पीछा करते हुए वहां गया। उसे आते देख रामदास ने अपने शिष्यों को आगे बढ़ने के लिए कहा।
शिष्य बिना पीछे मुड़े तेजी से आगे बढ़े। बाद में रामदास आए। उन्होंने उन शिष्यों को गलत आचरण के लिए काफी फटकारा। कुछ देर बाद सभी शिवाजी के महल में पहुंच गए। शिवाजी अपने गुरु के स्वागत के लिए स्वयं बाहर आए और गुरु को प्रणाम किया। वे गुरु को नहाने-धोने के लिए स्नान घर ले गए, वहां अचानक उनकी नजर गुरु की खुली पीठ पर पड़ी, जिस पर डंडे की चोट के लाल निशान और घाव थे। शिवाजी ने चिंतित होकर उसका कारण पूछा। समर्थ रामदास उत्तर में मौन ही रहे। तब शिवाजी ने उनके शिष्यों से अपने गुरु की ऐसी बुरी दशा का कारण पूछा तब उन लोगों ने बहुत ही संकोच के साथ रास्ते में हुई घटना का विवरण सुना दिया शिवाजी को यह सुनकर आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि वह जानते थे कि एक सच्चा संत अपने प्रियजनों पर आई विपदा अपने ऊपर ले लेता है। यही उसकी पहचान है।
एक बार वह कुछ शिष्यों को साथ लेकर शिवाजी से मिलने जा रहे थे। रास्ते में उनके शिष्यों को भूख-प्यास सताने लगी। गुरु उनसे कुछ दूर आगे-आगे चल रहे थे। बीच में उन्होंने एक गन्ने का खेत देखा। भूख और प्यास न रोक पाने के कारण वे उस खेत में घुस गए और सबने एक-एक गन्ना अपने लिए उखाड़ लिया और चूसने लगे। तभी खेत का मालिक वहां आ पहुंचा और देखते ही वह समर्थ रामदास के शिष्यों की ओर डंडा लेकर दौड़ा। वे सब अपने गुरु की शरण में भागे। तब खेत का मालिक भी उनका पीछा करते हुए वहां गया। उसे आते देख रामदास ने अपने शिष्यों को आगे बढ़ने के लिए कहा।
शिष्य बिना पीछे मुड़े तेजी से आगे बढ़े। बाद में रामदास आए। उन्होंने उन शिष्यों को गलत आचरण के लिए काफी फटकारा। कुछ देर बाद सभी शिवाजी के महल में पहुंच गए। शिवाजी अपने गुरु के स्वागत के लिए स्वयं बाहर आए और गुरु को प्रणाम किया। वे गुरु को नहाने-धोने के लिए स्नान घर ले गए, वहां अचानक उनकी नजर गुरु की खुली पीठ पर पड़ी, जिस पर डंडे की चोट के लाल निशान और घाव थे। शिवाजी ने चिंतित होकर उसका कारण पूछा। समर्थ रामदास उत्तर में मौन ही रहे। तब शिवाजी ने उनके शिष्यों से अपने गुरु की ऐसी बुरी दशा का कारण पूछा तब उन लोगों ने बहुत ही संकोच के साथ रास्ते में हुई घटना का विवरण सुना दिया शिवाजी को यह सुनकर आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि वह जानते थे कि एक सच्चा संत अपने प्रियजनों पर आई विपदा अपने ऊपर ले लेता है। यही उसकी पहचान है।
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